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कैसे करें तिल की पारंपरिक खेती जिससे किसानों को हो बहुत ज्यादा मुनाफा।

कैसे करें तिल की पारंपरिक खेती जिससे किसानों को हो बहुत ज्यादा मुनाफा।
 
तिल की पारंपरिक खेती

भारत में बड़े पैमाने पर तिलहन की फसल होती है कम समय में किसानों को ये बढ़िया मुनाफा देने वाली फसल है तिल का सबसे ज्यादा इस्तेमाल तेल बनाने के लिए किया जाता है 

तिल की बिजाई का सही समय
तिल की बिजाई जुलाई महीने के अंत तक की जा सकती है इसकी बिजाई करने के लिए 5,6 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ के हिसाब से बोया जाता है तिल की बिजाई  करते समय खेत में नमी अवश्य होनी चाहिए खेत की दो-तीन बार निराई गुड़ाई करके आप तिल की बिजाई करें तिल  एक ऐसी फसल है जो पछेती होने पर भी बोई जा सकती है तिल की बिजाई किसान जुलाई महीने के अंत तक कर सकता है।

तिल की खेती में रोग नियंत्रण के उपाय

तिल की फसल को सबसे अधिक नुकसान फिलोड़ी और फाईटोप्थोरा झुलसा रोग से होता है फिलोड़ी की रोकथाम के लिए बुवाई के समय कूंड में 10जी. 15 किलोग्राम या मइथआयल-ओ-डइमएटआन 25 ई.सी 1 लीटर की दर से प्रयोग करना चाहिए तथा फाईटोप्थोरा झुलसा  की रोकथाम हेतु 3 किलोग्राम कापर आक्सईक्लओरआइड या मैन्कोऊजेब 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से आवश्यकतानुसार दो-तीन बार छिडक़ाव करना चाहिए।

 तिल की कटाई का सही समय

तिल की पत्तियां जब पीली होकर गिरने लगे तथा पत्तियां हरा रंग से पीली हो जाए तब समझना लेना चाहिए की फसल पक कर तैयार हो गई है इसके बाद कटाई पेड़ सहित नीचे से करनी चाहिए कटाई के बाद बंडल बनाकर खेत में ही जगह जगह पर छोटे-छोटे ढेर में खड़े कर दे जब अच्छी तरह से पौधे सूख जाएं तब डंडे अथवा छड़ी की सहायता से पौधों को पीटकर या हल्का झाडक़र बीज निकाल ले।