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65 दिन में मालामाल कर देगी खरीफ की ये फसल! बिना पानी-खाद के हो जाती है तैयार

 
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डॉ. एनसी त्रिपाठी, एक कृषि एक्सपर्ट, ने बताया कि बाजरे की फसल को कम पानी या फिर सूखा प्रभावित क्षेत्रों में भी उगाया जा सकता है। बाजरा खेती को भी सरकार प्रोत्साहित कर रही है। साथ ही सरकार किसानों को मिनी सीड किट दे रही है। बाजरा 65 से 70 दिन में तैयार होता है।

बाजरे की खेती, सूखाग्रस्त क्षेत्रों में खरीफ की फसल के तौर पर उगाई जाती है, किसानों को बहुत फायदा पहुंचाती है। अनाज के साथ-साथ चारे भी अच्छे होते हैं। इसका चारा बहुत पौष्टिक है। बाजरे को मानसून की पहली बारिश के दिनों में खेती कर सकते हैं। 65 से 70 दिन में बाजर पककर तैयार हो जाता है। बाजरे की फसल को आसानी से तैयार किया जा सकता है।

नियामतपुर कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि एक्सपर्ट डॉ. एनसी त्रिपाठी ने बताया कि सरकार भी किसानों को बाजरे की खेती के लिए प्रोत्साहित कर रही है। साथ ही सरकार किसानों को मिनी सीड किट दे रही है। बाजरे की खेती को ज्यादा उर्वरक या सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती। बाजरे की फसल बहुत कम लागत में उगाई जा सकती है।

बाजरे की खेती दोमट, दोमट बलुई और बलुई मिट्टी के लिए बहुत अच्छी है। बाजरे की खेती में जल भराव नहीं होना चाहिए। बेहतर निकासी होनी चाहिए। फसल को ज्यादा समय तक जल भराव से नुकसान हो सकता है। बारिश से पहले डिस्क हैरो या मिट्टी पलटने वाले हल से दोहरी जुताई करें। उसके बाद खेत को भुरभुरा कर समतल करने के लिए पाटा डालें।

बाजरा की अधिक दिनों में पकने वाली किस्में, जिनकी बुवाई जुलाई के पहले सप्ताह में करनी चाहिए। यह 80 से 90 दिन में पक जाता है, जबकि मध्य अवधि में पकने वाली किस्म 70 से 80 दिन में पक जाती है। 10 जुलाई तक उन किस्मों की बुवाई करनी चाहिए। 10 जुलाई से 20 जुलाई तक जल्द पकने वाली किस्म की बुवाई करनी चाहिए, जो 65 से 70 दिन में तैयार हो जाती है। बाजर की बुवाई के लिए चार से पांच किलो बीज प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है। लाइनों में बाजर की बुवाई करते समय 45 से 50 सेंटीमीटर की दूरी रखनी चाहिए और पौधे से 10 से 15 सेंटीमीटर की दूरी रखनी चाहिए।

बाजरा के मजबूत पौधों और बढ़वार के लिए पांच टन गोबर की सड़ी हुई खाद या वर्मी कंपोस्ट का इस्तेमाल करना चाहिए। बुवाई करते समय लगभग 44 किलोग्राम यूरिया, 250 किलोग्राम एकल सुपर फास्फेट और 87 किलोग्राम डीएपी का उपयोग करना चाहिए। 40 किलोग्राम नाइट्रोजन और 40 किलोग्राम फास्फोरस प्रति हेक्टेयर बारिश होने पर इस्तेमाल करें। कृषि एक्सपर्ट कहते हैं कि मृदा परीक्षण के बाद आने वाले नतीजे के आधार पर उर्वरकों का इस्तेमाल कम या अधिक भी हो सकता है।