एक बार फिर फिकी पड गई सफेद सोने की चमक , किसानो की बडती परेशानी को देख सरकार ने लिया बडा फेसला
बडती गर्मी के कारण किसानों को कपास की खेती में भारी नुकसाना का सामना करना पड़ा है आपको बता दे की लू के चलते कपास ओर नरमा की फसल काफी खराब हो गई हे इसको देखते हुए सात जिलों में कपास की खेती प्रमुखता से की जाएगी। सरकरा ने किसानों की चिंता को देखते हुए अहम फैसला लिया है। इससे सफेद सोने की चमक फिर से वापस लाई जाएगी
बताया जा रहा हे की हरियाणा कपास की खेती में देश में अहम पायदान पर हैं प्रदेश में इस साल पिछले साल के मुकाबले करीब 30% प्रतिशत तक कपास की खेती की बुआई कम हुई है कारण है की हर साल हो रहा गुलाबी सुंडी का प्रकोप ने किसानों की कमर तोड़ कर रख दी है।
अगर बात करे इस साल की तो गुलाबी सुंडी से पहले लू से किसानों को भारी नुकसान हुआ है। लू से कपास की फसल का आठ से दस प्रतिशत का हिस्सा जल कर राख हो गया हे यह नुकसान राजस्थान के साथ लगते रेतीले इलाके में उगी कपास की फसल पर हुआ। दूसरी तरफ किसान देसी कपास उगाने की योजना बनाए बैठे थे तो उनको बीज ही नहीं मिल पाया ओर कुछ किसानो को बीज मिला वह नकली होने के कारण सही से जर्मिनेशन नही हुआ
बीज जर्मिनेशन न होने का कारण था कि बीज कंपनियों ने जो बीज तैयार किया व टेस्टिंग में फेल हो गया। अभी प्रदेश के सिरसा जिले के बाद भिवानी और हिसार में सबसे ज्यादा कपास की बुआई की जा रही है। इन जिलों के अलावा फतेहाबाद, चरखीदादरी, जींद और महेंद्रगढ़ में कपास की मुख्य रूप से फसल होती है। इन जिलों में पिछले साल के मुकाबले करीब 30 प्रतिशत तक नरमा ओर कपास की बुआई कम हुई है।
सही आंकड़े अगले महीने होने वाले सर्वे की रिपोर्ट के बाद ही आएगे वहीं, 2022 में हुई भारी वर्षा से करीब एक लाख से ज्यादा किसानों की कपास की फसल बर्बाद हो गई थी ओर बीमा कंपनियों ने 500 करोड़ रुपये से ज्यादा किसानों को क्लेम भी दिया था
हरियाणा और राजस्थान के आंकड़ों पर नजर डाले तो गुलाबी सुंडी, सफेद मच्छर का प्रकोप कपास पर ज्यादा होने के कारण इससे किसानों की कमर टूट गई हैं। पिछले तीन साल में 1.65 लाख हैक्टेयर कपास की बुआई का रकबा कम हुआ हैं। 2020-21 में 7.40 लाख हैक्टेयर कपास की बुआई हुई थी जो पिछले साल 5.75 लाख हैक्टेयर तक समित रह गई थी। इस साल यह और ज्यादा घट गई हैं। इसका मुख्य कारण गुलाबी सुंडी का ज्यादा प्रकोप है, जो किसानों को हर साल नुकसान पहुंचा रही हैं ओर किसान को कमजोर कर रही है।