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OPS: हरियाणा में पेंशन लाभ के लिए 21 साल लड़ा बिजली विभाग का जेई, चार साल पहले मौत भी आई, अब हाईकोर्ट ने दिया इंसाफ

Haryana News: 1999 में सेवानिवृत्त हुए कर्मचारी ने अपनी सेवानिवृत्ति का लाभ पाने के लिए 21 साल तक कानूनी लड़ाई लड़ी 
 
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Haryana News: 1999 में सेवानिवृत्त हुए कर्मचारी ने अपनी सेवानिवृत्ति का लाभ पाने के लिए 21 साल तक कानूनी लड़ाई लड़ी और यहां तक कि न्याय के इंतजार में मर गया। अब उनकी मृत्यु के चार साल बाद उन्हें न्याय मिला है।
हाईकोर्ट ने दक्षिण हरियाणा बिजली वितरण निगम लिमिटेड पर 8 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है।
 जुर्माने की राशि में से चार लाख रुपये उसके आश्रितों को दिए जाएंगे और शेष राशि उच्च न्यायालय कानूनी सेवा प्राधिकरण के पास जमा कराई जाएगी।
याचिका दायर करते समय चंद्र प्रकाश ने हाईकोर्ट को बताया था कि वह दक्षिण हरियाणा बिजली वितरण निगम में जूनियर इंजीनियर के रूप में काम कर रहे थे और 1999 में सेवानिवृत्त हुए थे इस दौरान उनके खिलाफ कुछ वित्तीय आरोप लगाकर सेवानिवृत्ति लाभ से 2,13,611 रुपये काट लिए गए। उनकी दो नियुक्तियां भी रद्द कर दी गईं। शिकायत करने से कोई फायदा नहीं हुआ। उच्च न्यायालय में शरण लेने के बाद, अदालत ने 2008 में निगम के दोनों आदेशों को रद्द कर दिया और निगम को कानून के अनुसार याचिकाकर्ता से हर्जाने की वसूली करने की स्वतंत्रता दी।
 
हाईकोर्ट ने निगम को याची की पेंशन से काटी गई राशि वापस करने का भी आदेश दिया था। इसके बाद निगम ने याची को कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया। निगम इसके बाद बार-बार मामले को लटकाता रहा। इस पर याची को बार-बार हाईकोर्ट की शरण लेनी पड़ी। 2020 में याची ने छठी याचिका दाखिल की थी और इसके कुछ समय बाद ही उसकी मौत हो गई थी। अब उनके कानूनी वारिस लड़ रहे थे। हाईकोर्ट ने अब याची की पेंशन से की गई कटौती की राशि 6 प्रतिशत ब्याज के साथ तीन माह में उनके वारिसों को सौंपने का आदेश दिया है।

अधिकारियों के रवैया कानून के खिलाफ 

हाईकोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि पेंशन व्यक्ति के संपत्ति के अधिकार के अधीन आता है। तय कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बिना इससे किसी को वंचित नहीं किया जा सकता। याची से हुए नुकसान की वसूली के लिए उसकी पेंशन से कटौती की गई थी, जो वैध नहीं था। 
हाईकोर्ट का 2008 में दिया गया फैसला भी निगम ने अपने हिसाब से ढाल लिया और रिकवरी के लिए कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया। बिना किसी जांच, विभागीय कार्रवाई या तय प्रक्रिया के पेंशन रोकी ही नहीं जा सकती थी। निगम के रवैए के कारण रिटायर कर्मी को अपने हक के लिए जीवन की अंतिम सांस तक इंतजार करना पड़ा, हम इसके प्रति असंवेदनशील नहीं हो सकते।