GST portal: जीएसटी पोर्टल पर नहीं दिया गया अभी तक कोई भी संशोधन का विकल्प, रिटर्न में संशोधन के लिए परेशान हो रहे करबारी।
जीएसटीआर-1 रिटर्न में कोई गड़बड़ी होने के बाद कारोबारी संशोधन के लिए जीएसटी पोर्टल में जीएसटीआर-1ए की तलाश कर रहे हैं, लेकिन वह अभी तक उपलब्ध नहीं हुआ है। टैक्स सलाहकारों के मुताबिक, जीएसटी काउंसिल की 22 जून को हुई पिछली बैठक में इस पर निर्णय के बाद नोटिफिकेशन भी जारी कर दिया गया था। लेकिन इसकी व्यवस्था पोर्टल पर अब तक नहीं की गई है।
पूरे महीने में हुई बिक्री का डाटा कारोबारी अगले माह की 11 तारीख तक जीएसटीआर-1 में फाइल करते हैं। इस बिक्री के आधार पर उन्हें 20 तारीख तक फाइल होने वाले 3बी रिटर्न में टैक्स चुकाना होता है। कई बार जीएसटीआर-1 में बिक्री के आंकड़े गलत हो जाते हैं। इन आंकड़ों में संशोधन न हो पाने की
जीएसटीआर-1ए की घोषणा होने के बाद भी नहीं मिल पा रही सुविधा, रिटर्न में संशोधन के लिए परेशान हो रहे कारोबारी
वजह से उनका टैक्स भी गलत हो जाता है। इस रिटर्न को संशोधित करने की सुविधा देने की लगातार मांग की जा रही थी। 22 जून की जीएसटी काउंसिल की बैठक में जीएसटीआर-1ए की सुविधा दी गई थी। इसमें कहा गया कि कारोबारी 11 तारीख को जीएसटीआर-1 फाइल करने के बाद 20 तारीख को उबी रिटर्न फाइल करने से पहले जीएसटीआर-1ए में रिटर्न को संशोधित कर सकते हैं। मर्चेंट्स चैंबर आफ उत्तर प्रदेश की जीएसटी कमेटी के चेयरमैन संतोष गुप्ता के मुताबिक, नोटिफिकेशन जारी करने से पहले तैयारी कर लेनी चाहिए थी।
वैट के समय मिल जाती थी मोहलत
वैट के समय रिटर्न फाइल करने के दौरान अगर कोई गड़बड़ी हो जाती थी तो उसे रिटर्न को संशोधित करने की छूट होती थी। इससे आंकड़े सही हो जाते थे। लेकिन जीएसटी में यह व्यवस्था नहीं है, जबकि आयकर और एक्साइज में यह सुविधा लागू है।
इन दिक्कतों का सामना कर रहे व्यापारी
जीएसटी अधिकारी इस बिक्री को न दिखाने का नोटिस जारी कर ब्याज के साथ अर्थदंड भी लगा सकता है।व्यापारियों के खाते देखने वाले अकाउंटेंट कई-कई फर्म का एक साथ काम करते हैं। सभी के कागजात उनके पास होते हैं। ऐसे में कई बार जीएसटीआर-1 में ऐसी बिक्री भी दिखा दी जाती है, जिसका व्यापारी से कोई मतलब नहीं होता।
कारोबारी 3बी रिटर्न में इसका टैक्स जमा नहीं करता है। ऐसी स्थिति में अधिकारी नोटिस जारी कर देते हैं, जिसमें टैक्स के साथ ब्याज और अर्थदंड मांगा जाता है। मामले अपील में जाते हैं तो वहां भी ज्यादातर मामलों में व्यापारी की बात नहीं मानी जाती। मजबूरी में उसे टैक्स, ब्याज, अर्थदंड उस बिक्री के लिए देना पड़ता है, जो उसने की नहीं। आइटीसी के गलत समायोजन के मामले भी लंबित जीएसटी लागू होने के वित्त वर्ष 2017-18 और उसके बाद 2018-19 के कारोबार का शुरुआती दौर होने से आइटीसी के गलत समायोजन के मामले अब तक ठीक नहीं हो पा रहे हैं।