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50 फीसदी अग्निवीर हो सकते हैं परमानेंट! 2 साल पहले लागू अग्निपथ योजना में बदलाव की तैयारी

 
Agnipath Scheme

Agnipath Scheme: सैनिकों की सीधी भर्ती की जगह 'अग्निपथ' योजना शुरू होने के दो साल बाद अब बदलाव एजेंडे में है। हाल ही में सैन्य मामलों के विभाग ने तीनों सेनाओं के 24 महीने के अनुभव पर एक सर्वे किया है. इसके आधार पर बदलाव के प्रस्तावों पर विचार किया जा रहा है. सर्वे के दौरान कुछ अहम बातें सामने आईं, जो बदलाव की चाहत जाहिर करती हैं।

50 फीसदी अग्निवीर स्थाई हो सकते हैं

इन प्रस्तावों में सबसे महत्वपूर्ण है स्थायी सेवा में अग्निवीर की भर्ती के लिए कोटा बढ़ाना। वर्तमान में 25% अग्निवीर 4 साल की सेवा के बाद सेना में शामिल हो सकते हैं। अब इसे बढ़ाकर 50% और तकनीकी सेवाओं में 75% किया जा सकता है.

यह भी प्रस्तावित है कि 25% अग्निवीर को 7 वर्षों के लिए वापस ले लिया जाए। तकनीकी रूप से कुशल अग्निवीर कर्मियों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। फिलहाल अग्निवीर की ट्रेनिंग 24 हफ्ते की होती है।

ट्रेनिंग की अवधि 4 से 6 हफ्ते तक बढ़ सकती है

तीनों सेनाओं में सर्वेक्षण से पता चला कि कम प्रशिक्षण अवधि का भी सैन्य कौशल पर असर पड़ रहा है। ऐसे में इसे 4-6 हफ्ते तक बढ़ाने पर विचार किया जा सकता है. तकनीकी दृष्टि से इसे और बढ़ाया जा सकता है। हालिया लोकसभा चुनाव में अग्निवीर योजना भी बड़ा मुद्दा थी.

इस योजना को लेकर कांग्रेस ने सरकार पर हमला बोला था. कांग्रेस-सपा ने इसे खत्म करने का ऐलान किया था. अब विपक्ष इसे संसद में उठाने की तैयारी में है. एनडीए में शामिल जेडीयू ने भी बदलाव की मांग की है. इसे लेकर बीजेपी दबाव में है.

सर्वे में सामने आए बदलाव के कारण

  • जब तीनों सेनाओं में सर्वे किया गया तो सर्वे में पता चला है कि अग्निवीरों में देशसेवा की जगह करियर 4 साल के बाद की जिंदगी पर फोकस है.
  • अग्निपथ योजना में ग्रामीण की जगह शहरी युवा ज्यादा बढ़ रहे हैं. इससे सेना की समावेशी प्रोफाइल प्रभावित होने की आशंका भी नजर आ रही है.
  • अग्निवीरों में स्थायी सेवा में आने की होड़ सबसे मुख्य है. इससे उनके बीच एक- दूसरे को पीछे छोड़ने की भावना जन्म ले रही है.
  • अग्निवीरों को पेंशन- ग्रेच्युटी का लाभ नहीं मिलता. चार साल  की सेवा के बाद पूर्व सैनिक का दर्जा नहीं दिया जाता है. यदि किसी अग्निवीर की ड्यूटी पर मौत हो जाती है तो परिवार को 1 करोड़ रु. तो मिलते हैं, पर शहीद का दर्जा नहीं मिलता. ऐसे में यह विषय भी चिंता के विषय है.