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रेगिस्तान भूमि में पाए जाने वाले पौधे को हल्के में ना लें औषधिय गुणो से भरपूर है यह पौधा 

रेगिस्तान भूमि में पाए जाने वाले पौधे को हल्के में ना लें औषधिय गुणो से भरपूर है यह पौधा 
 
औषधिय गुणो से भरपूर

राजस्थान के सूखे जैसे स्थान पर पाए जाने वाला बूई का पोधा औषधिय गुणो से भरा होता है और इसे हम खाली खरपतवार समझकर नष्ट कर देते हैं इस बुई के पौधे मे कई चामत्कारिक गुण पाऐ जाते हैं और यह बहुत सी बीमारियों में जड़ी बूटी की तरह काम में लिया जाता है राजस्थान जैसे सूखे स्थानो पर खूब फलता फूलता है।

मूल रूप से यह पौधा अफ्रीका ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण एशियाई क्षेत्र में मुख्य रूप से पाया जाता है। राजस्थान के थार मरुस्थल का सुखा वातावरण इस पौधे के लिए पूर्णतया अनुकूल होता है। इस पौधे की लंबी जड़ें बहुत गहराई तक जमीन में फेली हुई होती है, जिससे थार के मरुस्थल में कम वर्षा होने के बावजूद भी यह पौधा बड़ी आसानी से पैदा हो जाता है।  


इसके पत्ते कुछ लंबोतरे और मांसल होते हैं। बुई़ का क्षुप दो से तीन फीट ऊंचाई तक बढ़ जाता है और यह अमूमन 2 से 3 वर्ष तक जीवित रहता है इसके पौधे के ऊपरी भाग पर दिसंबर - जनवरी में सफेद रुई की तरह के मोटे पुष्प क्रम विकसित हो जाते है इस वजह से इसको डेजर्ट कॉटन भी बोला जाता है। अरब देशों में इसके  नरम पुष्पक्रम को गद्दे और तकियों में भरने के काम में भी लिया जाता है।


हुई का यह पौधा वायु और जल से मिट्टी के कटाव को भी रोकता है, वहीं किसानों के लिए यह एक खरपतवार के रूप में समस्या बना रहता है। इसे ग्रामीण क्षेत्रों में जंगली बूई,ओर सफेद फूल के नामों से भी जाना जाता हैं।

बुई के पोधे के औषधीय उपयोग

इस पौधे को भेड बकरियों की आंखों के रोग को दूर करने के लिए काम में लिया जाता है, वही गद्दे भरने के भी काम में लाया जाता है। इसकी जड़े टूथब्रश यानी कोलगेट बनाने के काम में लाई जाती है जिसे बर्फ झाड़ी नाम से भी जाना जाता है। पौधे की जड़े तना एवं स्पाइक काम में लाए जाते हैं।


जंगली बुई के पौधे को गठिया,त्वचा का टूटना रक्त संबंधी विकार, त्वचा का सूखापन आदि में भी काम में लिया जाता है। इस पौधे से एस्कोरबिक एसिड पत्तों से ग्लूकोसाइड आदि निकाले जाते हैं।


गुर्दे की बीमारियों को दूर करने में भी सक्ष्म है इस पौधे को बहुत उपयोगी माना जाता है । गुर्दे के पथरी को दूर करने के लिए भी लाभदायक माना जाता है वही फूल और जड़े दवा में काम आती है। इस पौधे के अंदर 21 फीसदी प्रोटीन पाई जाती है। भारत देश मे इसकी 28 प्रजातियां पाई जाती है।