Indian judicial update: देश में बदल चुके हैं कानूनी दांव-पेंच, अब हो जाइए अपडेट
Indian judicial update: देश के अंदर कानूनी दांव-पेंच अब बदल चुके हैं। अगर कोई थाना आपसे एफआईआर दर्ज करने में आनाकानी करे, तो उसे यह प्रावधान बताइए। एफआईआर होने के 15 दिनों के भीतर वह थाना इस प्रथम सूचना को मूल ज्यूरिडिक्शन वानी जहां का मामला है, वहां भेजेगी। पुलिस ऑफिसर या सरकारी अधिकारी के खिलाफ मुकद्दमा चलाने के लिए अब 120 दिन में संबंधित अथॉरिटी से इजाजत मिलेगी और अगर अथॉरिटी इजाजत नहीं देती तो इसे इजाजत मान लिया जाएगा।
अब एफआईआर के 90 दिनों के भीतर चार्जशीट दाखिल करनी होगी, 60 दिनों के भीतर कोर्ट को आरोप तय करने होंगे। इसके साथ ही मामले की सुनवाई पूरी होने के 30 दिनों के भीतर जजमेंट देना होगा और जजमैंट दिए जाने के बाद 7 दिनों के भीतर हर हाल में उसकी कॉपी मुहैय्या करानी होगी।
पुलिस को हिरासत में लिए गए शख्स के बारे में उसके परिवार को लिखित में बताना होगा। ऑफलाइन और ऑनलाइन सूचना भी देनी होगी। अगर 7 साल या उससे ज्यादा सजा का मामला है तो विक्टिम को सुने बिना ऐसा मामला वापस नहीं किया जाएगा।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 417 के तहत अगर हाईकोर्ट से किसी को 3 महीने वा उससे कम की जेल या 3000 रुपये तक का जुर्माना या दोनों की सजा मिलती है, तो इसे ऊपरी अदालत में चुनौती नहीं दिया जा सकती। आईपीसी में धारा 376 थी, जिसके तहत 6 महीने से कम की सजा को चुनौती नहीं दे सकते थे यानी नई कानून में बोड़ी राहत दी गई है।
अगर मैजिस्ट्रेट कोर्ट ने किसी अपराध में 100 रुपये का जुर्माना सुनाया है तो उसके खिलाफ अपील नहीं की जा सकती। हालाकि अगर किसी और सजा के साथ साथ भी यही सजा मिलती है, तो फिर इसे चुनौती दिया जा सकता है। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 जो कि 1 जुलाई 2024 से लागू हो चुकी है, उसके तहत जिन प्रमुख कानूनों में बदलाव किया गया है, उन्हें जानना जरूरी है। अब पहली जैसी जमानत प्रक्रियाएं नहीं रही, जमानत प्रक्रियाओं में बदलाव हुआ है, इसे समझना होगा।
इसी तरह संपत्ति जब्ती प्रावधानों में भी बदलाव हुआ है। पुलिस और मैजिस्ट्रेट को सख्तियों में नये कानूनों के तहत बदलाव हुआ है और पुरानी सीआरपीसी के 9 प्रावधानों को पूरी तरह से निरस्त कर दिया गया है, जबकि 107 प्रावधानों में बदलाव किया गया है। अब 7 साल या उससे ज्यादा की सजा वाले अपराधों के लिए फॉरेंसिक जांच को अनिवार्य बनाया गया है।
संघीय अपराधों के मामले में एफआईआर दर्ज कराने का प्रावधान है। इसी तरह जाति, भाषा या पर्सनल विलीफ के आधार पर अगर कई लोग समूह बनाकर किसी का मर्डर करते हैं, तो उन्हें 7 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास या मृत्युदंड तक दी जा सकती है। इसके साथ ही बीएनएसएस में अपराध और अपराधी ट्रैकिंग नैटवर्क और सिस्टम से जुड़े बदलाव भी किए गए हैं। अब लोग बिना पुलिस स्टेशन गए भी ऑनलाइन एफआईआर दर्ज करा सकते हैं। हर कानूनी जास्कार को अपने आपको अपडेट करने के लिए इन बदलावों की जानकारी रखना जरूरी है।