हरियाणा प्रदेश के खेतों में प्रचुर मात्रा में मिलता यह पौधा, जोड़ों के दर्द समेत कई बिमारियों में है रामबाण ओषधि, जानें
यह औषधि में संजीवनी बूटी की अहमियत रखता है। यह पौधा के रोगियों के लिए रामबाण का काम करता है। जोड़ों का दर्द एक गंभीर बीमारी है।
Home Medicine: हरियाणा प्रदेश के राजस्थान की सीमा से लगते खेतों में बथुआ हमें सरसों और गेहूं की फसलों में प्रचुर मात्रा में मिलता है। बथुआ औषधि को संजीवनी बूटी माना जाता है। यह जोड़ों के दर्द में रामबाण का काम करता है।सिरसा जिले के खेतों में भी बथुआ प्रचुर मात्रा में मिलता है।
यह औषधि में संजीवनी बूटी की अहमियत रखता है। यह पौधा के रोगियों के लिए रामबाण का काम करता है।
जोड़ों का दर्द एक गंभीर बीमारी है। इसके इलाज हेतु हम ऐसी जड़ी-बूटी की बात कर रहे हैं जो हरियाणा के खेतों में अपार मात्रा में पाई जाती है। इस जड़ी बूटी के सही उपयोग से जोड़ों के दर्द को हम जड़ से खत्म कर सकते हैं।
बथुए के साग में कैल्शियम, आयरन, मैग्नीशियम आदि प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। औषधि विशेषज्ञों के अनुसार बथुए का साग खाने से शरीर में आयरन की कमी पूरी होती है। बथुए का साग जोड़ों के दर्द को तो कम करता ही करता है साथ ही साथ यह पीलिया रोग को भी जड़ से खत्म करता है।
बथुए के साग में फोलिक एसिड भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। बथुए का साग पथरी के रोग को खत्म करने का काम भी करता है। इसका साग खाने से आमाशय मजबूत होती हैं और कब्ज की बीमारी में राहत मिलती है। बथुआ शरीर में चुस्ती फुर्ती लाने हेतु रामबाण का काम करता है। बथुए का साग खाने से व्यक्ति तंदुरुस्त होने लगता है।
हरियाणा प्रदेश के लगभग सभी घरों में सर्दी के 3 महीना में हमें बथुए का साग देखने को मिलता है। यह पौधा हरियाणा प्रदेश के खेतों में बोई जाने वाली सरसों और गेहूं की फसलों में ज्यादातर मात्रा में पाया जाता है।
बथुआ एक महत्त्वपूर्ण तथा व्यक्ति के स्वास्थ्य को तंदुरुस्त करने वाला पौधा है। इस पौधे के पत्ते शीतादरोधी (Antiscorbutic) होते हैं। इसके अलावा बथुए में कई प्रकार के क्षार पाए जाते हैं। जो पेट रोग से निजात पाने के लिए फायदेमंद होते है। यह पौधा अनेक बीमारियों को ठीक करने में भी काम में लाया जा सकता है।
हरियाणा प्रदेश के सिरसा हिसार फतेहाबाद जींद जिले के खेतों में बथुआ प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। हालांकि किसान इस पौधे को खरपतवार मानते हैं लेकिन औषद्यालय इसे संजीवनी बूटी के नाम से पुकारता है। किसान बथुए का उपयोग पशुओ हेतु हरे चारे के रूप में भी करते हैं। इसको हमारी भाषा में बथुआ, बथुया, चिल्लीशाक, आदि नाम से भी जाना जाता है।